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सोमवार, 22 मई 2023

मालदा से लौटकर

ऊपर कमीज़ है
नीचे गमछा
पीठ पर अमेरिकन टूरिस्टर का रफ़ू किया बैग।
दृश्य में वह आदमी
खेत की मेड़ पर उसी तरह बैठा है
जैसा बीस-पच्चीस साल पहले बैठा था।
जलकुंभियां उतनी ही स्थिर।

लड़कियां हैं पसीने से लथपथ
पढ़ाई कर लौटतीं
गोद में बच्चा लिए
निर्दोष आंखे लिए।

भैंसे लड़ रहे बीच सड़क पर
आदमी शांति से प्रतीक्षा में हैं
गाड़ियों के हैंंडल थामे
उन्हें कोई जल्दी नहीं।
लड़ाईयों के ख़त्म होने की प्रार्थना में
इसी तरह रहा जा सकता है
बिनी किसी हड़बड़ी।

एक सड़क है
जो कच्ची से पक्की हुई है
बैंक खुले हैं कई
कर्ज़ लेने वाले बढ़े हैं बहुत
और हॉर्न वाली मोटर साइकिलें

एक खुला हुआ रेलवे फाटक है
जहां सदियों का इंतज़ार है
ट्रेन के गुज़र जाने का।

गीत गाते बाउल भिक्षु हैं
बिना सुने खुदरा देते भले लोग
कानों में इयरफोन हैं।

हिंदुओं से ज़्यादा मुसलमान हैं
कहीं कोई आतंक नहीं फिर भी
ये ज़मीन अगर सदियों से है
तो हमारे मुल्क के नक्शे में
सबसे ज़्यादा दिखाई क्यूं नहीं देती।

कोई मेरी सरकार को पावर वाला चश्मा दे दो
या कागज़ वाला रेल टिकट।

निखिल आनंद गिरि

रविवार, 20 जनवरी 2013

'अजी, आंख में पड़ गया था कुछ..'

आंखें

दो आंखें..
आंसू दो झरते हैं..
दो आंखों से..
दो आंखो की पीड़ा एक..

दो दिशाओं में तकती हैं..
दो आंखें..                                          
दोनों तरफ अंधेरा एक..

रोना

सबसे बुरा रोना वह
जब रोने के बाद 
ख़ुद ही पोछने पड़े आंसू
और दीवारों से करने पड़े बहाने
'अजी, आंख में पड़ गया था कुछ..
या कि प्याज़ बड़ी ज़ालिम चीज़ है यार..''

खिड़की

शौचालयों की कमी में,
वो छिप कर बैठ जाती हैं
नोकिया या वोडाफोन के इश्तेहारों तले,
कोई रेलगाड़ी जब गुज़रती है हहाती हुई,
वो कपड़े ठीक करती हैं
खड़ी हो जाती हैं..
इश्तेहार बन कर रह जाती हैं..
खिड़कियों से ताड़ती कई निगाहों के लिए..

बीमारी

मैं नींद की गोली लेता रहा
ख़ुद से बातें करता रहा
सपनों के साथ वक्त बिताने को
बीमारी अच्छा बहाना थी

गदहे

राजनीति के युवराज वही
जो दो नंबर के कर सके काम
वही लंबी रेस का घोड़ा
बाक़ी सब गदहे
भारत भ्रष्ट महान !

मोमबत्ती

पिघलने से पहले तक
जितना जलती है मोमबत्ती
रोशनी की उम्मीद बढ़ाती है
मोमबत्ती कोई चुनाव चिह्न नहीं
इसीलिए उम्मीद का मतलब धोखा नहीं
उम्मीद ही समझा जाए

आम आदमी

एक नई पार्टी मेंबर बना रही है,
लोगों को नई टोपी पहना रही है
टोपी पर लिखा होता है 'आम आदमी'
पांच रुपये की रसीद कटाकर
आम आदमी नई टोपी पहन रहा है...

निखिल आनंद  गिरि

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

मृत्यु की याद में

कोमल उंगलियों में बेजान उंगलियां उलझी थीं जीवन वृक्ष पर आखिरी पत्ती की तरह  लटकी थी देह उधर लुढ़क गई। मृत्यु को नज़दीक से देखा उसने एक शरीर ...

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