akhilendra yadav लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
akhilendra yadav लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

ख़ुद से ख़ुद तक सफर है इन दिनों

मोहल्ले के कई बच्चे ट्यूशन के लिए अचानक घर पर आने लगे हैं। पता नहीं उनके स्कूलों में पढ़ाई होती भी है या नहीं। मेरे पास फुर्सत होती नहीं फिर भी उनके साथ बैठना-बतियाना अच्छा लगता है। उनके समय को समझने में बहुत मदद मिलती है। उनकी बातों के आईने में अपने स्कूल के दिनों को भी चुपके से देख लेता हूं। कुछ ख़ास बदलता हुआ नहीं दिखता। सिवाय अपनी उम्र के। सिवाय मोबाइल और इंटरनेट के। उनकी पढ़ाई के बीच में अचानक से मोबाइल और इंटरनेट आते रहते हैं। ऐसे जैसे कभी इनके बिना पढ़ाई होती ही नहीं हो।

मैंने इंटरनेट स्कूल के दिनों में ही सीखा। लगभग पंद्रह साल पुरानी ईमेल आईडी ही आज भी चल रही है। इस तरह से सोचता हूं तो लगता है काफी बड़ा हो गया हूं। मेरे बाद की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई। दिल मानता ही नहीं इस बात को। मेरे ख़याल से ऐसा सबके साथ होता होगा। एक लंबे समय तक पापा हमेशा एक ही उम्र के लगते रहे हैं। मैं भी एक ख़ास उम्र में फ्रीज होकर रह जाना चाहता हूं। उसके बाद की उम्र के साथ बहुत सी दुश्वारियां भी हैं।

बात इंटरनेट की चल रही थी। हाल ही में एक बार फेसबुक पर किसी अनजान लड़की के नाम से फ्रेंड रिक्वेस्ट आई। बहुत बातचीत के बाद भी वो बताने को तैयार नहीं थी कि कौन है, कैसे जानती है। अचानक चैट में उसने मेरा फेवरेट सिंगर पूछा और मैंने झट से कहा –मुकेश । उधर से जवाब आया मुकेश कौन?  मैं समझ गया कि लड़की (या लड़का) मेरी उम्र से काफी छोटा है। इसके बाद उस अनजान लड़की का कोई मेसैज वगैरह आज तक नहीं आया। मुझए उसकी याद आती है। उसे बताने का मन करता है कि मुकेश एक गायक रहे हैं और उन जैसा गाना कोई हंसी-मज़ाक नहीं है।

पिछले कुछ दिनों से अपने साथ एक एक्सपेरिमेंट कर रहा था। ख़ुद को फेसबुक, ब्लॉगिंग से दूर रखने की कोशिश चल रही थी। करीब डेढ महीने से फेसबुक पर कोई पोस्ट नहीं डाली। अगस्त के महीने में सिर्फ एक पोस्ट डाली, वो भी अपने बर्थडे पर। सोचा था कि जो लोग लाइक-कमेंट वगैरह करते हैं, मेरे सोशल मीडिया की दूरी को महसूस करेंगे, हाल-चाल पूछेंगे। महसूस हुआ कि मेरे सोशल मीडिया पर रहने-ना रहने का किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। हां, एकाध लोग हैं जो सचमुच मुझे सोशल मीडिया पर मिस करते हैं।

अखिलेंद्र उनमें सबसे ख़ास है। मेरी कई कविताएं, कई ब्लॉग-पोस्ट उसे ठीक-ठीक याद हैं। उससे बात करके इतना अपनापन महसूस होता है जैसे हम सोशल मीडिया पर नहीं मोहल्ले की छत पर मिल रहे हों। मेरी शादी में सिर्फ 16 मेहमान बाराती थे। उनमें से एक अखिलेंद्र भी था। उसकी और हमारी पहचान सिर्फ इतनी थी कि सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को हम जानते थे। उसने सीधा आज़मगढ़ से ट्रेन पकड़ी और समस्तीपुर चला आया। बिना किसी कार्ड-न्योते के। ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया से हो रहे मेरे मोहभंग को भी अखिलेंद्र ने ही तोड़ा। रात के ग्यारह बजे अचानक मेरी ढाई साल पुरानी एक पोस्ट को याद करते हुए फोन कर दिया तो मुझे लगा कि ब्लॉगिंग करते रहना चाहिए। ऐसा वो कई बार कर चुका है। आज उसका जन्मदिन है तो ये ब्लॉग पोस्ट उसके लिए। और भी कई दोस्तों के लिए जिनसे मिला ही नहीं, मगर लगता है कि कई-कई बार मिला हूं। शायद मिलता तो किसी न किसी बात को लेकर खटास आ जाती। वो मेरा 'ब्लॉगभाई' है, जैसे गुरुभाई या असली भाई होता है।



हैप्पी बर्थडे अखिलेंद्र
अखिलेंद्र के बहाने उन सबका शुक्रिया जो इस नई दुनिया से मेरी दुनिया का हिस्सा बने। किसी एक का नाम लेना ठीक नहीं। हमने एक-दूसरे को देखा नहीं है। मगर उन्होंने कई बार हथेली थामकर मुश्किलों में रास्ता पार कराया है और मुड़ गए। हम शुक्रिया नहीं कह पाए। ये पोस्ट उन्हीं के लिए, इस भरोसे के साथ कि लाख नाउम्मीदी के बीच नये अनजान रास्तों पर चलने का हौसला बचा है, बना रहेगा। बचपन में एक ख़ास दोस्त ने डायरी में कुछ लिखा था, अचानक याद आ गया -
'हैं कुछ ऐसी बातें,
हैं कुछ ऐसी यादें,
जो धुंधली न होंगी,
न होंगी पुरानी
हंसायेगी हमको, रुलायेगी हमको
कहीं बीच में जो रुकी है कहानी.
 
निखिल आनंद गिरि  

ये पोस्ट कुछ ख़ास है

मृत्यु की याद में

कोमल उंगलियों में बेजान उंगलियां उलझी थीं जीवन वृक्ष पर आखिरी पत्ती की तरह  लटकी थी देह उधर लुढ़क गई। मृत्यु को नज़दीक से देखा उसने एक शरीर ...

सबसे ज़्यादा पढ़ी गई पोस्ट