बुधवार, 23 मार्च 2016

रंग-रंगीला परजातंतर..

एक बीजेपी के घोड़े ने शरीफ से विधायक की टाँग तोड़ दी। बेचारा विधायक लोहे की टांग लेकर घूम रहा है। घोड़ा बीजेपी का है तो मेनका गांधी भी कुछ नहीं बोल रहीं। इसे कहते हैं लोकतंत्र कहते हैं। विधायक की टूटी टांग की तरह लंगड़ा। लंगड़े आम की तरह मीठा।
एक टीम है क्रिकेट खेलने वालों की। मर्दों की। पाकिस्तान से खेले चाहे फुद्दिस्तान से। मीडिया सुबह से टेंट गाड़ के कमेंट्री करता है। क्रिकेट के बाप-दादा सब तंबू गाड़ कर ज्ञान बांटते हैं। असली में जब मैच होता है तो पूरे मर्दों की टीम रन बनाती है 75। हाहाहा। इसे कहते है वर्ल्ड कप। मर्दों वाला। औरतों की टीम खेलती है, हारती है, जीतती है, किसी को फर्क नहीं पड़ता। औरतों के लिए न तो मीडिया के तंबू में जगह है, न तो देश के दिल में। इसी को पत्रकारिता कहते हैं।
एक विधायक हैं बीजेपी के। राजस्थान से सू्ंघकर जेएनयू के कूड़े में से माल गिनते हैं। सिगरेट का टुकड़ा इतना, बीड़ी उतना। कांडम इतना, लड़कियां उतनी। जेएनयू को जनेऊ पहनाना चाहते हैं। पहना दीजिए। जन्माष्टमी भी मनाइए। कन्हैया को भगत सिंह बना दीजिए आपलोग। भगत सिंह के नाम पर एयरपोर्ट तक मत बनाइए।
एक होती है होली। एक होती हैं मालिनी अवस्थी। हर चैनल पर घूम घूम कर गाना गाती हैं। हर चैनल पर। एक होते हैं कुमार विश्वास। हर चैनल पर एक ही लाइन पढ़ते हैं। पाँच-दस-बीस साल गुज़र गए। होली का ये तरीका नहीं बदला। किसी को कविता का मन किया तो चुटकुलेबाज़ों को उठाकर ले आया। व्हाट्सऐप से उठा उठाकर ये चुटकुले सुनाएं चुटकुलेबाज़ कवि भाई लोग, वो चुटकुले सुनाएं कि बाबा नागार्जुन शरमा जाएं, दिनकर की आत्मा कांप जाएं। मंच पर कविता चालू आहे।
बाराखंभा स्टेशन पर रोज सवेरे नौ बजे बाहर निकलता हूं तो सिर झुकाए बूट पॉलिश के लिए कई बच्चे एक साथ 'सर, सर..' कहते रहते हैं। मन करता है मेरे दस जोड़ी जूते होते तो एक साथ सबसे पॉलिश करवा लेता। होली में कुछ रंग उनके भी खिल आएँ। न वो कन्हैया हैं, न मोदी। न वो आज तक हैं, न परसों तक। उन्हें ऐसे ही रहना है बरसों तक।
तब तक जै राष्ट्रभक्ति, जय भारत माता। जय कांय कांय कांय। जो सुर में सुर न मिलाए, उन्हें धांय धांय धांय।

मर्दों को पूरे दिन की होली मुबारक... औरतों को गुझिया बनाने से फुर्सत मिले तो उन्हें भी..

निखिल आनंद गिरि

मंगलवार, 22 मार्च 2016

खोये-से किसी ख़त का लिफाफा हैं बेटियां



 

खुशबू है जिनके दम से, वो फिज़ां है बेटियां
हर घर की बुलंदी का आसमां है बेटियां
उन आंखों में छिपे हैं मोहब्बत के ख़ज़ाने
खोये-से किसी ख़त का लिफाफा हैं बेटियां
जब तक दुआओं में असर है, ज़िंदगी महफूज़
बेटे अगर दवा हैं तो दुआ हैं बेटियां

निखिल आनंद गिरि

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