रविवार, 19 अक्तूबर 2014

मॉडर्न दुनिया, मॉडर्न दादियां

छोटे पर्दे पर दादियों का क्रेज़ ऐसा है कि अली असगर जैसे टीवी एक्टर के लिए ‘कपिल की कॉमेडी नाइट्स’ में दादी का एक किरदार अलग से रखा गया और दादी के रोल में अली ऐसे पॉपुलर हुए कि हाल के चुनाव प्रचार में उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर न्योते मिलने लगे। करवा चौथ पर लुधियाना में उनका लाइव शो देखने, 'शगुन की पप्पी' लेने बड़ी तादाद में सुहागिनें आईं. उम्र के लिहाज से ‘कॉमेडी नाइट्स’ की दादी बूढ़ी तो लगती है, मगर घुटनों में दर्द की वजह से वो डांस करना नहीं छोड़ती और हर शो में जमकर ठुमके लगाती है।

सास-बहू सीरियल्स की सबसे ख़ास बात ये है कि अगर आप अपने रिमोट से चैनल बदलते रहें तो लगभग हर सीरियल के नाम, सेट, कमर्शियल ब्रेक, कहानियां, लड़ाइयां एक जैसी नज़र आयेंगी। पता ही नहीं चलेगा कि आप कब एक सीरियल से दूसरे में आ गए हैं। लेकिन इनमें कुछ दादियां ही हैं जो आपको अलग से याद रह जाती हैं। ये सबसे अलग हैं, कूल हैं और नए ज़माने की भी हैं। ये सिर्फ वैसी दादी नहीं है जो अपनी बहू को चाबियां सौंपकर तीर्थ यात्रा पर निकल जाती हैं। ये सेलेब्रिटी दादियां आज के ज़माने के डायलॉग बोलती हैं, गाती हैं और अपनी बची हुई ज़िंदगी भरपूर जीती हैं।

ज़ी टीवी के ‘कुमकुम भाग्य’ में एक नहीं, दो दादियां हैं। एक तो इतनी मॉर्डर्न है कि आपको ‘विकी डोनर’ की वो दादी याद आ जाएगी जो वक्त-बेवक्त छोटे पेग भी लगाती है। दूसरी दादी अपने रॉकस्टार पोते की बीवी को हर मुश्किल से बचाती रहती है। मगर कुछ दादियां वक्त के साथ आज भी नहीं बदलीं। स्टार प्लस के मशहूर सीरियल ‘सुहानी सी एक लड़की’ में एक दादी हैं जिनकी तीन बहुएं हैं। दो गोरी और एक सांवली। सांवली बहू को दादी घर का कोई शुभ काम नहीं करने देती। उसके लिए गोरा होने की महंगी से महंगी क्रीम और लोशन मंगवाती है। दादी की वजह से सांवली बहू घर में जगह बनाने के लिए संघर्ष करती रहती है। ज़ी टीवी के सीरियल ‘डोली अरमानों की’ में उर्मि की दादी बेटियों को घर का बोझ समझती है और उसे अपने सनकी पति सम्राट के पास भेजने के लिए तमाम हथकंडे अपनाती है। उधर सम्राट अपनी बीवी को सबक सिखाने के लिए अखबार में दादी की झूठी मौत की ख़बर तक छपवा देता है। तब भी दादी अपनी स्टीरियोटाइप इमेज से बाहर नहीं आती और दामाद जी को ही सही समझती है।

जो भी हो, लगातार सिकुड़ते जा रहे शहरी परिवारों में दादियां-नानियां ग़ायब होती जा रही हैं तो छोटा पर्दा ये कमी पूरी करता दिख रहा है। घर हो या पर्दा, दादियां जहां भी रहें, रौनक बनी रहती है।



निखिल आनंद गिरि
(यह लेख अमर उजाला के संडे मनोरंजन पेज के लिए लिखा गया है. )

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

कैसे-कैसे महानायक !

लेखक-पत्रकार अनिल यादव उत्तर-पूर्व पर लिखे गए अपने यात्रा संस्मरण वह भी कोई देस है महराज में असम के एक आदिवासी समुदाय का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि साल 2000 के दौरान जब कौन बनेगा करोड़पति लांच हुआ था तो इस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए वहां के पीसीओ बूथ पर लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं। उन लाइनों में गांवबूढ़ा (आदिवासी गांव का मुखिया) से लेकर पीठ पर बस्ते लटकाए स्कूली बच्चे भी किस्मत आज़माने के लिए शामिल रहते थे। उन्हीं लाइनों में अपने बेटे को खोजते साइकिल पर बांस की लंबी टहनियां (कईन) लादे एक आदिवासी ने अपने बेटे को वहां पाकर खीझते हुए विलाप किया जो अपने घर में लगी आग बुझाने के बजाय उस घोड़मुंहे अजनबी (अमिताभ) के साथ जुआ खेलने जा रहा हो उसके बाल-बच्चों के मुंह में तो भगवान भी दाना नहीं डालेगा। उस आदिवासी का गुस्सा सिर्फ अपने बेटे पर नहीं था बल्कि उस घोड़मुंहे अजनबी पर भी था जो अपने जादुई आकर्षण के नाम पर सुदूर असम के ग़रीब नौजवानों को भी भरमाए जा रहा था। ये सिलसिला आज भी जारी है। एक करोड़ की इनाम राशि से शुरु हुआ ये कार्यक्रम अब सात करोड़ का महाकरोड़पति बना रहा है। बीसवीं सदी का महानायक अब इक्कीसवीं सदी में भी उसी तमगे को ढो रहा है और उन पर दांव खेलने वालों को अरबपति बनाए जा रहा है। ठीक से याद नहीं कब दीमापुर के किसी आदिवासी ने इस खेल से अपनी किस्मत संवारी हो। चौदह सवालों के खेल में आलिया भट्ट को इन विकल्पों में किसने चुंबन लिया जैसे सवाल भी शामिल होते हैं। अमिताभ बच्चन अपनी अदायगी, अपनी चुप्पी में इतने प्रेडिक्टेबल होते जा रहे हैं कि उनका हर अंदाज़ एक दोहराव जैसा लगता है। हर हफ्ते इस शो का एक एपिसोड किसी नयी रिलीज़ होने वाली फिल्म से लेकर कॉमेडी शो, कपिल शर्मा, हनी सिंह जैसों के लिए प्रोमोशन का काम भी करता है जिसमें महानायक इनके साथ ठुमके लगाते हैं, टी.वी. देखने वाली आबादी का एक घंटे तक रसरंजन करते हैं और ख़ूब पैसे कमाते हैं।
मीडिया और बाज़ार ने महानायकों की परिभाषा इतनी विकृत और आसान कर दी है कि राह चलता कोई भी महानायक बन सकता है। इन छवियों को वो गले में लटकाए घूमते हैं और हम उन पर आंख मूंदे अपना  भरोसा करते हैं। इमेज यानी छवियों का यही खेल राजनीति से लेकर मीडिया, यहां तक कि अपराध जगत में भी महानायक बनाता है जिससे समाज का फायदा कम नुकसान ज़्यादा होता है। पप्पू यादव से लेकर डीपी यादव तक सब इसी इमेज के सहारे आज भी महापुरुष बनने की फिराक में लगे हुए हैं। ये मज़ाक नहीं तो और क्या है कि इलाज के नाम पर जेल से निकलकर कोई रसूख वाला आदमी हरियाणा में चुनाव प्रचार करे और कोई उफ्फ तक न करे।

अमिताभ बच्चन की अभिनय क्षमता पर शायद ही किसी को शक हो, मगर इतने लंबे सामाजिक जीवन के बाद उम्र के सातवें दशक उन्हें इस बात का हिसाब ज़रूर करना चाहिए कि उन्होंने अपनी आड़ में कितने अघोषित अपराध किए या करवाए हैं। एक ज़िम्मेदार वरिष्ठ नागरिक के तौर पर उन्हें उन सभी दुष्प्रचारों के लिए माफी मांगनी चाहिए जिससे जनता दिग्भ्रमित होती रही है। देश उनके लिए दुआएं करता है तो देश के प्रति इतनी ज़िम्मेदारी तो बनती ही है। ऐसा किसी किताब में लिखा भी नहीं कि महानायकों का आत्मचिंतन करना मना हो।


निखिल आनंद गिरि
(11 अक्टूबर को अमिताभ के बर्थडे का एडवांस गिफ्ट)

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

गांधी जी के नाम पर

हाथी घोड़ा पालकी
जय जय मोहन'लाल' की

गांधी जी गुजरात में
मोदी की हर बात में

गांधी जी अमरीका
मोदी के आगे फीका

गांधी जी के चेले,
नोट-लोट कर खेले

गांधी जी की लाठी
गुंडों की सहपाठी

गांधी जी की झाड़ू
झूमे पीकर दारू

गांधी जी की खादी
पहिने सब फ़सादी

सत्य अहिंसा नारा
मुल्क चीख कर हारा

गांधी जी के बंदर
घोटाले में अंदर

गांधी जी के नाम पर
छोड़ तमाशा काम कर

हाथी घोड़ा पालकी
जय जय मोहन'लाल' की

निखिल आनंद गिरि

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